9 दिन में रक्त कैंसर का इलाज: भारत में CAR-T सेल्स थेरेपी से 80% मरीजों को राहत
भारत ने 9 दिन में रक्त कैंसर का इलाज कर दिखाया। CMC वेल्लोर और ICMR द्वारा विकसित CAR-T सेल्स थेरेपी से 80% मरीज 15 माह बाद भी कैंसर मुक्त पाए गए। इलाज की लागत भी 90% तक कम हो गई है।

🧬 भारत में 9 दिन में रक्त कैंसर का इलाज: कार-टी सेल्स थेरेपी से 80% मरीज 15 माह बाद भी स्वस्थ
नई दिल्ली। भारत के डॉक्टरों ने कैंसर चिकित्सा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। तमिलनाडु के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC), वेल्लोर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने मिलकर एक ऐसी कार-टी सेल्स थेरेपी विकसित की है, जिसने केवल 9 दिनों में रक्त कैंसर का इलाज कर दिखाया।
इस क्लीनिकल ट्रायल को “Vel-CAR-T” नाम दिया गया है, जो विशेष रूप से एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) और लार्ज बी-सेल लिम्फोमा (LBCL) के मरीजों पर किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, 80% मरीज 15 महीने बाद भी कैंसर-मुक्त पाए गए। यह परीक्षण अस्पताल में ही की गई पहली कार-टी सेल थेरेपी है।
🔬 क्या है कार-टी सेल्स थेरेपी?
इस उपचार में मरीज के खुद के टी-सेल्स (प्रतिरक्षा कोशिकाएं) को प्रयोगशाला में कैंसर से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है और फिर उन्हें वापस शरीर में डाला जाता है। यह प्रक्रिया अब तक विदेशों में की जाती थी, जो महंगी और समय-लेवा होती थी। लेकिन CMC वेल्लोर ने इसे अस्पताल में ही 9 दिन में तैयार कर लागू किया, जबकि वैश्विक स्तर पर इसमें 40 दिन तक का समय लगता है।
📊 परीक्षण के परिणाम:
- ALL (एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया) से प्रभावित सभी मरीज ठीक हो गए।
- LBCL (लार्ज बी-सेल लिम्फोमा) के मरीजों में से 50% पूर्ण रूप से ठीक हुए।
- 80% मरीज 15 महीने बाद भी कैंसर-मुक्त पाए गए।
- इलाज के दौरान कुछ हल्के दुष्प्रभाव मिले, लेकिन न्यूरो टॉक्सिसिटी नहीं पाई गई।
💰 लागत में भारी कटौती: 90% तक सस्ता इलाज
दुनियाभर में कार-टी थेरेपी की लागत ₹3 से ₹4 करोड़ (3.8-5.2 लाख USD) तक होती है। लेकिन भारत में विकसित Vel-CAR-T मॉडल से इलाज की लागत में 90% तक की कमी आ सकती है। इससे गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों को भी आधुनिक चिकित्सा का लाभ मिलेगा।
🧪 यह क्यों है ऐतिहासिक?
- भारत की पहली अस्पताल-स्तरीय CAR-T सेल्स थेरेपी
- स्वदेशी बायोथेरेपी तकनीक का विकास
- दुनिया में सबसे तेज़ CAR-T सेल्स निर्माण (9 दिन)
ICMR ने इस कामयाबी को “कैंसर के खिलाफ भारत की बायोथेरपी क्रांति की शुरुआत” बताया है। यह शोध Molecular Therapy Oncology जर्नल में प्रकाशित किया गया है।